Dr. Hari Mohan Saxena

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बीकानेरी बंधुओं ने भारतीय चंद्रयान 2 के लुप्त लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को चन्द्रमा पर खोज निकाला

user image 2020-09-25
By: Dr. Hari Mohan Saxena
Posted in: Space Exploration
बीकानेरी बंधुओं ने भारतीय चंद्रयान 2 के लुप्त लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को चन्द्रमा पर खोज निकाला

बीकानेर के दो अंतरिक्ष उत्साही बंधु, श्री जग मोहन सक्सेना और डॉ. हरि मोहन सक्सेना ने भारतीय चंद्रयान 2 के खोए हुए लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को चंद्रमा की सतह पर सलामत और साबुत ढूंढ निकाला है। 7 सितंबर, 2019 को लैंडिंग के अंतिम चरण के दौरान लैंडर के साथ इसरो मिशन कंट्रोल और चंद्रयान 2 मिशन के चंद्र ऑर्बिटर के असफल संचार संपर्क के बाद कई लोगों ने अनुमान लगाया था कि अनियंत्रित कठोर लैंडिंग के प्रभाव के कारण लैंडर पूरी तरह से नष्ट हो गया होगा। यह धारणा दृढ़ विश्वास में बदल गई थी जब नासा ने 3 दिसंबर 2019 को चंद्रमा की सतह की तस्वीर पोस्ट की थी, जो निर्धारित लैंडिंग स्थल से कई किलोमीटर दूर के इलाके में बिखरे लैंडर के मलबे के छोटे टुकड़ों को दिखा रही थी। नासा ने चेन्नई के एक युवा इंजीनियर श्री षण्मुग सुब्रमण्यन द्वारा लैंडर के मलबे के एक छोटे टुकड़े को ढूंढने के दावे का समर्थन भी किया। आश्चर्यजनक रूप से, इसरो ने न तो दावे का खंडन किया और न ही इसे सत्यापित  किया और न ही प्रेस में प्रकाशित समाचारों और टीवी और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में युवक की प्रशंसायुक्त लेखों की बाढ़ को रोकने की कोशिश की जिसने दुनिया भर में लैंडर के दुखद अंत की घोषणा की। हालांकि इसरो के प्रमुख के. सिवन ने हादसे के अगले दिन 8 सितंबर, 2019 को जल्दबाजी में एक प्रेस बयान दिया था कि चन्द्रमा की परिक्रमा करने वाले ऑर्बिटर के कैमरे द्वारा अंधेरी रात में ली गई लैंडर की एक थर्मल छवि से पता चला है कि लैंडर सलामत और साबुत था, वे जनता को लैंडर की छवि दिखाने में विफल रहे। इस घटना के एक साल बाद भी, इसरो ने लैंडर की कोई छवि जारी नहीं की है। यह सुब्रमण्यन द्वारा प्रेस में  किये गए उस झूठे और तकनीकी रूप से निराधार दावे  को और अधिक विश्वसनीयता प्रदान करता है जिसको आज तक इसरो द्वारा सत्यापित या समर्थन नहीं किया गया है। विस्मय यह है कि चन्द्रतल पर जिन बिंदुओं को षण्मुग ने पहले नष्ट विक्रम के टुकड़े बताया था उन्हीं बिंदुओं को अब वह प्रेस के सामने साबुत और सक्रिय विक्रम और प्रज्ञान बता रहा है।

दिलचस्प बात यह है कि नासा की कहानी इसरो प्रमुख के दावे का खंडन करती है, कई सवाल अनुत्तरित हैं और अस्पष्टता आज भी जारी है। नासा की कहानी एक आम आदमी के लिए भी तर्कसंगत नहीं है क्योंकि लैंडर ने चंद्रमा की सतह से केवल 350 मीटर ऊपर मिशन नियंत्रण से संपर्क खो दिया था और यह चंद्रमा पर पृथ्वी की तुलना में केवल 1/6 गुरुत्व होने पर धातु के छोटे टुकड़ों में लैंडर विघटन और निर्धारित लैंडिंग साइट से दूर कई वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में मलबे के बिखराव का कारण नहीं बन सकता है। यदि यह वास्तव में सच था तो इसरो ऑर्बिटर कैसे एक अंधेरी रात में भी लैंडर को साबुत बरकरार पाता। हालांकि, यह रहस्य तब और गहरा गया जब इसरो लैंडर की कोई भी तस्वीर एक साल बाद भी प्रेस को जारी करने या अपनी वेबसाइट पर पोस्ट करने में विफल रहा ।

नासा और इसरो द्वारा प्रचारित कहानी के संस्करणों में अस्पष्टता को देखते हुए एक सेवानिवृत्त बैंकर और अंतरिक्ष उत्साही श्री जग मोहन सक्सेना ने सच्चाई का पता लगाने के लिए अपनी जांच शुरू की। उन्होंने अपनी वेबसाइट पर नासा लूनर रीकॉनिस्सेंस ऑर्बिटर (एलआरओ) द्वारा ली गई हजारों किलोमीटर लंबी चंद्र सतह की विशाल छवि श्रंखला को स्कैन करना शुरू कर दिया। कई दिनों की कड़ी मेहनत के बाद अंत में उन्होंने चंद्र सतह पर निर्धारित लैंडिंग साइट के पास एक ऐसी वस्तु को ढूंढ निकाला जो एक सामान्य बोल्डर से अलग प्रतीत होती थी और उसकी एक मानव निर्मित वस्तु होने की संभावना थी। उन्होंने इसे लापता लैंडर की छवि मानकर इसरो और नासा के वैज्ञानिकों को तस्वीर ट्वीट करते हुए अनुरोध किया कि वे उनकी खोज को जाँच कर सत्यापित करें। हालांकि, इसरो और नासा ने ऐसा नहीं किया।

चंद्र विशेषज्ञों  की हतोत्साहित करने वाली प्रतिक्रिया से निराश, श्री सक्सेना ने अपने बड़े भाई डॉ. हरि मोहन सक्सेना के साथ वह छवि साझा की, जो लुधियाना में इम्यूनोलॉजी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं तथा पहले मास्को में भारत के दूतावास में साइंस काउंसलर के रूप में काम कर चुके हैं। वह अंतरिक्ष विज्ञान में रूचि रखते हैं और 32 साल पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में एमआईटी में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष विश्वविद्यालय द्वारा प्रायोजित एक अल्पकालिक अंतरिक्ष प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेकर एक अंतरराष्ट्रीय लूनर  बेस डिजाइन परियोजना पर काम चुके हैं।

डॉ. सक्सेना ने इस गुत्थी को सुलझाकर उचित निष्कर्ष पर ले जाने के लिए जांच को आगे बढ़ाने का फैसला किया। चूँकि उनके द्वारा प्राप्त छवि में कोई विशेष फीचर नहीं दिख रहे थे, इसलिए उन्होंने इसे आकार में कई सौ गुना बढ़ाया और कुछ और विवरण प्राप्त करने के लिए छवि को संसाधित करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी बेटी प्रियंका सक्सेना, एक इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर जो वर्तमान में आई. आई. टी., जोधपुर में पीएचडी कर रही है, से स्पष्टता के लिए छवि को संसाधित करने को कहा। जब उसने सॉफ्टवेयर और कुछ एल्गोरिदम की मदद से तस्वीर को संसाधित कर दिया और डॉ. सक्सेना को संसाधित छवि वापस दी, तो वह वेब पर उपलब्ध लैंडर के चित्रों के साथ तुलना करके लैंडर की कुछ विशेषताओं को छवि में पहचान गए।

लैंडर की पहचान करने में सफलता से उत्साहित डॉ. सक्सेना ने लैंडिंग के बाद अलग-अलग तारीखों पर और अलग-अलग कोणों और दिशाओं से ली गई लैंडर की एलआरओसी छवियों का अध्ययन किया । छवियों ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि न केवल लैंडर विक्रम चंद्रमा पर साबुत और सलामत मौज़ूद है, इसने रोवर को रैंप से चंद्र सतह पर भी पहुंचाया है। डॉ. सक्सेना ने अपनी खोज के दौरान लूनर रोवर प्रज्ञान को भी चंद्र तल पर लैंडर विक्रम से कई मीटर आगे खोज निकाला। इस महत्वपूर्ण खोज से स्पष्ट रूप से ये निष्कर्ष निकलता है कि इसरो के वैज्ञानिकों को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में, जहां अभी तक कोई भी राष्ट्र नहीं पहुंचा है, लूनर लैंडर विक्रम को रोवर प्रज्ञान के साथ सफलतापूर्वक लैंड करने में बड़ी सफलता मिली है। यद्यपि प्रेस और मीडिया में प्रचारित लैंडर के विनाश के दावे और कहानियां सुर्खियों में छा गईं, लेकिन उन्होंने जनता को गुमराह किया। उत्साही बंधुओं, श्री जग मोहन सक्सेना और डॉ. हरि मोहन सक्सेना, जिन्होंने लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान की खोज की, के प्रयासों ने सच्चाई को उजागर कर दिया। प्रियंका सक्सेना का लैंडर छवि प्रसंस्करण का योगदान भी इस खोज में कम महत्वपूर्ण नहीं था।Enlarged and enhanced images of the lander and the rover

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