Dr. Hari Mohan Saxena

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Category: Space Exploration

क्या चंद्रयान लैंडर विक्रम के ध्वस्त होने का दावा झूठा है? सच क्या है?

भारतीय चंद्रयान 2 मिशन के तहत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो द्वारा प्रक्षेपित लैंडर विक्रम के चंद्रमा पर पहुँचते ही 7 सितम्बर 2019 को दुर्घटनाग्रस्त हो जाने की घटना से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण तथ्य जन सामान्य से छुपाए गए हैं तथा लैंडरके चकनाचूर हो जाने की झूठी खबर विश्व भर के प्रमुख समाचार पत्रों में छापी गई तथा टीवी पर प्रसारित की गई है. लैंडर विक्रम के चकनाचूर हो जाने की खोज का श्रेय भी नासा जैसी शीर्ष एजेंसी द्वारा एक युवा इंजीनियर षणमुख सुब्रमण्यम के दावे पर बिना परखे ही आनन-फानन में दे दिया गया था. इस पर विडंबना यह है कि इसरो ने आज तक ना तो सत्य उजागर किया और ना ही झूठ का खंडन किया. इसरो के मौन से विश्व में  यह झूठ सहर्ष ही सच मान लिया गया, परंतु वास्तविकता कुछ और ही है. नासा और इसरो के संबद्ध अधिकारियों और संगठनों को बार-बार सच बताने पर भी वह मौन साधे बैठे हैं. वह ना तो सत्य का उजागर करते हैं और ना ही झूठे दावों का खंडन करते हैं. यह बात स्थिति को और रहस्यमय बना रही है तथा किसी बड़े और व्यापक षड्यंत्र की ओर इशारा करती है. राष्ट्रहित में यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि लैंडर विक्रम संबंधी पूरी जाँच सर्वोच्च स्तर पर की जाए और सत्य को देश और विश्व के सामने लाया जाए.

सत्य यह है कि ऑर्बिटर चंद्रयान से छूटने के बाद लैंडर विक्रम चकनाचूर नहीं हुआ था, अपितु सकुशल चंद्रतल पर उतर गया था. हालांकि उसका इसरो मिशन कंट्रोल से संचार संपर्क लैंड करने के कुछ ही क्षण पहले 2.1 किलोमीटर की दूरी पर ही खत्म हो गया था. ना केवल विक्रम सुरक्षित चंद्रतल पर उतरने में सफल हुआ, उसके द्वार खुलने पर रैंप भी ठीक तरह से लग गया था और रोवर प्रज्ञान सफलतापूर्वक चंद्रतल पर उतार दिया गया था. इस प्रकार भारत विश्व में पहला ऐसा देश बन गया जिसने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में सफलता पूर्वक अपना स्वदेशी लैंडर और रोवर उतार दिया था.

लैंडर विक्रम को चंद्रतल पर सुरक्षित खोज निकालने का श्रेय मिलना चाहिए बीकानेर के ग़ैर पेशेवर खगोलविद जगमोहन सक्सेना को जिन्होंने उस दुर्घटना के 1 साल बाद अथक प्रयास करके नासा द्वारा द्वारा जारी की गई चंद्रतल की तस्वीरों में से अगस्त 2020 में विक्रम को ढूंढ निकाला. विक्रम की सही पहचान करने में उनकी मदद की उनके बड़े भाई डॉ. हरि मोहन सक्सेना ने जो लुधियाना में इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर होने के अलावा स्वयं भी अंतरिक्ष अनुसंधान में रुचि रखते हैं. डॉ. सक्सेना ने जगमोहन द्वारा चिन्हित संभावित लैंडर की छवि को परिष्कृत और बड़ा करने के बाद उसके प्रमुख हिस्सों को पहचान लिया. उन्होंने इस खोज को पुष्ट करने के अलावा स्वयं ही रोवर प्रज्ञान को भी ढूंढ निकाला जो लैंडर विक्रम से कुछ दूरी पर सही सलामत मौजूद था.

चूँकि लैंडरके चंद्रतल पर उतरने के बाद के क्रियाकलाप स्वचालित एवं पूर्व निर्धारित थे, उन पर संचार संपर्क टूटने का कोई असर नहीं हुआ और लैंडरने अपना कार्य जारी रखा. प्रज्ञान सौर ऊर्जा से संचालित था अतः वह ऊर्जा पाकर धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा और 1 साल के दौरान लगभग 1 किलोमीटर की दूरी तय कर चुका था. डॉ. सक्सेना ने इस महत्वपूर्ण खोज को ईमेल व ट्विटर द्वारा नासा व इसरो तक पहुंचाने की बहुत कोशिश की परंतु दोनों ही संगठनों ने चुप्पी साध ली. अंत में डॉ. सक्सेना ने एक शोध पत्र में सारी जानकारी व विक्रम और प्रज्ञान की चंद्रतल पर मौजूदगी की छवियां तथा उनकी सही लोकेशन एक वैज्ञानिक जर्नल – “इंटरनेशनल जर्नल आफ रिसर्च – ग्रंथालय:” में प्रकाशित कर दी (https://t.co/gIPykDO3jz). वह शोध पत्र भी उन्होंने नासा, इसरो तथा अन्य संबंधित संगठनों के शीर्ष पदाधिकारियों को प्रेषित कर दिया. परंतु आज तक उन्होंने ना तो इसका खंडन किया है और ना ही पुष्टि. प्रेस व मीडिया ने भी इस सत्य को दबा दिया. इस चुप्पी ने कई महत्वपूर्ण प्रश्नों को सामने लाकर रख दिया है जिनके जवाब राष्ट्रहित में बहुत जरूरी है क्योंकि इस मिशन में जनता द्वारा दिए गए कर से जमा सरकारी पैसों का निवेश हुआ था. यह जनता का अधिकार है कि उसे सच का पता चले. कुछ अनुत्तरित प्रश्न नीचे दिए गए हैं:

  1. जांच के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक क्यों नहीं की गई? उन्होंने क्या तथ्य जुटाए?
  2. इसरो अध्यक्ष के. सिवन ने दुर्घटना के 1 दिन बाद प्रेस में वक्तव्य दिया था कि लैंडर विक्रम की थर्मल छवि रात में ले ली गई है, वह चंद्रतल पर समूचा पाया गया है, विखंडित नहीं हुआ लेकिन तिरछा लैंड किया है. 2 साल बाद भी उस थर्मल इमेज या उसके बाद दिन के उजाले में ली गई विक्रम की कोई तस्वीर सार्वजनिक तौर पर इसरो की वेबसाइट पर या मीडिया में जारी क्यों नहीं की गई? इसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का बहाना मान्य नहीं होगा क्योंकि दुर्घटना तो हो ही चुकी है. वैसे भी नासा तो पूरे चंद्रमा के सतह की सारी तस्वीरें अपनी वेबसाइट पर नियमित रूप से प्रदर्शित करता रहता है.
  3. षणमुख सुब्रमण्यन द्वारा चंद्रतल पर छोटे बिंदु को दिखाकर उसे लैंडरके टुकड़ों के रूप में पेश किया गया था. उसकी पुष्टि नासा ने भी दिसंबर 2019 में तुरंत ही कर दी और बड़े पैमाने पर उसे विश्व के समाचार पत्रों व टीवी पर प्रस्तुत किया गया था. परंतु उस छवि को लैंडर के टुकड़े बताने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. ठोस धातु के बने 2.54 x 2 x 1.2 मीटर के लैंडर के छोटे बिंदुओं के बराबर टुकड़े होने का कोई तर्कसंगत कारण नहीं है क्योंकि वह चंद्रमा की मिट्टी में गिरा था, चट्टानों पर नहीं और चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी का 1/6 ही है. दिलचस्प बात यह है कि विक्रम के टुकड़े ढूंढने का श्रेय लेने के बाद सुब्रमण्यन ने बाद में अगस्त 2020 में स्वयं स्वीकारा था कि लैंडरटूटा नहीं बल्कि साबुत चंद्रतल पर उतरा था.
  4. क्या 2 सालों में ऑर्बिटर लैंडर विक्रम को ढूंढने और उसकी तस्वीर लेने में नाकामयाब रहा? क्या हमारे वैज्ञानिक नासा के ऑर्बिटर द्वारा ली गई चंद्रतल की तस्वीरों में विक्रम को अभी तक नहीं ढूंढ पाए?

5. यदि लैंडर चकनाचूर हो गया था तो नियोजित लैंडिंग साइट के पास जो समूचा लैंडर हमने ढूंढा है वह क्या है? उसकी सही लोकेशन तथा कोऑर्डिनेट भी हमने प्रकाशित किए हैं. नासा और इसरो उसी स्थान पर जांच क्यों नहीं करते जबकि हमारे जैसे गैर पेशेवर लोग भी चंद्रतल की तस्वीरों में से इन कोऑर्डिनेट के आधार पर लैंडरको आसानी से ढूंढ सकते हैं.

  1. इस पूरे प्रकरण में विसंगतियां क्यों हैं? जांच में पारदर्शिता क्यों नहीं है? सत्य सामने क्यों नहीं आने दिया जा रहा है? क्या कुछ शीर्ष अधिकारियों को बचाने के लिए ऐसा किया जा रहा है? जो भी कारण रहा हो, इसरो के इस रवैये से उसकी अपनी छवि को नुकसान अवश्य पहुंचा है. झूठ को बढ़ावा देना और सत्य को दबाना, दोनों ही एक प्रतिष्ठित सार्वजनिक संस्थान से अपेक्षित नहीं हैं.
  2. यदि संचार संपर्क टूटने का कारण इसरो को पता चल गया है तो यह राष्ट्र के सामने आना चाहिए. यदि किसी अन्य देश का इस साजिश में हाथ है तो वह भी विश्व को पता चलना आवश्यक है. दोषियों पर कोई कार्यवाही हो या ना हो, परंतु भारत को सफलतापूर्वक लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को चंद्रमा पर उतारने का श्रेय अवश्य मिलना चाहिए. और इस महत्वपूर्ण खोज के लिए खोजी सक्सेना बंधुओं को भी उन का श्रेय अवश्य मिलना चाहिए.English blog on lander story
बीकानेरी बंधुओं ने भारतीय चंद्रयान 2 के लुप्त लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को चन्द्रमा पर खोज निकाला

बीकानेर के दो अंतरिक्ष उत्साही बंधु, श्री जग मोहन सक्सेना और डॉ. हरि मोहन सक्सेना ने भारतीय चंद्रयान 2 के खोए हुए लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को चंद्रमा की सतह पर सलामत और साबुत ढूंढ निकाला है। 7 सितंबर, 2019 को लैंडिंग के अंतिम चरण के दौरान लैंडर के साथ इसरो मिशन कंट्रोल और चंद्रयान 2 मिशन के चंद्र ऑर्बिटर के असफल संचार संपर्क के बाद कई लोगों ने अनुमान लगाया था कि अनियंत्रित कठोर लैंडिंग के प्रभाव के कारण लैंडर पूरी तरह से नष्ट हो गया होगा। यह धारणा दृढ़ विश्वास में बदल गई थी जब नासा ने 3 दिसंबर 2019 को चंद्रमा की सतह की तस्वीर पोस्ट की थी, जो निर्धारित लैंडिंग स्थल से कई किलोमीटर दूर के इलाके में बिखरे लैंडर के मलबे के छोटे टुकड़ों को दिखा रही थी। नासा ने चेन्नई के एक युवा इंजीनियर श्री षण्मुग सुब्रमण्यन द्वारा लैंडर के मलबे के एक छोटे टुकड़े को ढूंढने के दावे का समर्थन भी किया। आश्चर्यजनक रूप से, इसरो ने न तो दावे का खंडन किया और न ही इसे सत्यापित  किया और न ही प्रेस में प्रकाशित समाचारों और टीवी और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में युवक की प्रशंसायुक्त लेखों की बाढ़ को रोकने की कोशिश की जिसने दुनिया भर में लैंडर के दुखद अंत की घोषणा की। हालांकि इसरो के प्रमुख के. सिवन ने हादसे के अगले दिन 8 सितंबर, 2019 को जल्दबाजी में एक प्रेस बयान दिया था कि चन्द्रमा की परिक्रमा करने वाले ऑर्बिटर के कैमरे द्वारा अंधेरी रात में ली गई लैंडर की एक थर्मल छवि से पता चला है कि लैंडर सलामत और साबुत था, वे जनता को लैंडर की छवि दिखाने में विफल रहे। इस घटना के एक साल बाद भी, इसरो ने लैंडर की कोई छवि जारी नहीं की है। यह सुब्रमण्यन द्वारा प्रेस में  किये गए उस झूठे और तकनीकी रूप से निराधार दावे  को और अधिक विश्वसनीयता प्रदान करता है जिसको आज तक इसरो द्वारा सत्यापित या समर्थन नहीं किया गया है। विस्मय यह है कि चन्द्रतल पर जिन बिंदुओं को षण्मुग ने पहले नष्ट विक्रम के टुकड़े बताया था उन्हीं बिंदुओं को अब वह प्रेस के सामने साबुत और सक्रिय विक्रम और प्रज्ञान बता रहा है।

दिलचस्प बात यह है कि नासा की कहानी इसरो प्रमुख के दावे का खंडन करती है, कई सवाल अनुत्तरित हैं और अस्पष्टता आज भी जारी है। नासा की कहानी एक आम आदमी के लिए भी तर्कसंगत नहीं है क्योंकि लैंडर ने चंद्रमा की सतह से केवल 350 मीटर ऊपर मिशन नियंत्रण से संपर्क खो दिया था और यह चंद्रमा पर पृथ्वी की तुलना में केवल 1/6 गुरुत्व होने पर धातु के छोटे टुकड़ों में लैंडर विघटन और निर्धारित लैंडिंग साइट से दूर कई वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में मलबे के बिखराव का कारण नहीं बन सकता है। यदि यह वास्तव में सच था तो इसरो ऑर्बिटर कैसे एक अंधेरी रात में भी लैंडर को साबुत बरकरार पाता। हालांकि, यह रहस्य तब और गहरा गया जब इसरो लैंडर की कोई भी तस्वीर एक साल बाद भी प्रेस को जारी करने या अपनी वेबसाइट पर पोस्ट करने में विफल रहा ।

नासा और इसरो द्वारा प्रचारित कहानी के संस्करणों में अस्पष्टता को देखते हुए एक सेवानिवृत्त बैंकर और अंतरिक्ष उत्साही श्री जग मोहन सक्सेना ने सच्चाई का पता लगाने के लिए अपनी जांच शुरू की। उन्होंने अपनी वेबसाइट पर नासा लूनर रीकॉनिस्सेंस ऑर्बिटर (एलआरओ) द्वारा ली गई हजारों किलोमीटर लंबी चंद्र सतह की विशाल छवि श्रंखला को स्कैन करना शुरू कर दिया। कई दिनों की कड़ी मेहनत के बाद अंत में उन्होंने चंद्र सतह पर निर्धारित लैंडिंग साइट के पास एक ऐसी वस्तु को ढूंढ निकाला जो एक सामान्य बोल्डर से अलग प्रतीत होती थी और उसकी एक मानव निर्मित वस्तु होने की संभावना थी। उन्होंने इसे लापता लैंडर की छवि मानकर इसरो और नासा के वैज्ञानिकों को तस्वीर ट्वीट करते हुए अनुरोध किया कि वे उनकी खोज को जाँच कर सत्यापित करें। हालांकि, इसरो और नासा ने ऐसा नहीं किया।

चंद्र विशेषज्ञों  की हतोत्साहित करने वाली प्रतिक्रिया से निराश, श्री सक्सेना ने अपने बड़े भाई डॉ. हरि मोहन सक्सेना के साथ वह छवि साझा की, जो लुधियाना में इम्यूनोलॉजी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं तथा पहले मास्को में भारत के दूतावास में साइंस काउंसलर के रूप में काम कर चुके हैं। वह अंतरिक्ष विज्ञान में रूचि रखते हैं और 32 साल पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में एमआईटी में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष विश्वविद्यालय द्वारा प्रायोजित एक अल्पकालिक अंतरिक्ष प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेकर एक अंतरराष्ट्रीय लूनर  बेस डिजाइन परियोजना पर काम चुके हैं।

डॉ. सक्सेना ने इस गुत्थी को सुलझाकर उचित निष्कर्ष पर ले जाने के लिए जांच को आगे बढ़ाने का फैसला किया। चूँकि उनके द्वारा प्राप्त छवि में कोई विशेष फीचर नहीं दिख रहे थे, इसलिए उन्होंने इसे आकार में कई सौ गुना बढ़ाया और कुछ और विवरण प्राप्त करने के लिए छवि को संसाधित करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी बेटी प्रियंका सक्सेना, एक इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर जो वर्तमान में आई. आई. टी., जोधपुर में पीएचडी कर रही है, से स्पष्टता के लिए छवि को संसाधित करने को कहा। जब उसने सॉफ्टवेयर और कुछ एल्गोरिदम की मदद से तस्वीर को संसाधित कर दिया और डॉ. सक्सेना को संसाधित छवि वापस दी, तो वह वेब पर उपलब्ध लैंडर के चित्रों के साथ तुलना करके लैंडर की कुछ विशेषताओं को छवि में पहचान गए।

लैंडर की पहचान करने में सफलता से उत्साहित डॉ. सक्सेना ने लैंडिंग के बाद अलग-अलग तारीखों पर और अलग-अलग कोणों और दिशाओं से ली गई लैंडर की एलआरओसी छवियों का अध्ययन किया । छवियों ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि न केवल लैंडर विक्रम चंद्रमा पर साबुत और सलामत मौज़ूद है, इसने रोवर को रैंप से चंद्र सतह पर भी पहुंचाया है। डॉ. सक्सेना ने अपनी खोज के दौरान लूनर रोवर प्रज्ञान को भी चंद्र तल पर लैंडर विक्रम से कई मीटर आगे खोज निकाला। इस महत्वपूर्ण खोज से स्पष्ट रूप से ये निष्कर्ष निकलता है कि इसरो के वैज्ञानिकों को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में, जहां अभी तक कोई भी राष्ट्र नहीं पहुंचा है, लूनर लैंडर विक्रम को रोवर प्रज्ञान के साथ सफलतापूर्वक लैंड करने में बड़ी सफलता मिली है। यद्यपि प्रेस और मीडिया में प्रचारित लैंडर के विनाश के दावे और कहानियां सुर्खियों में छा गईं, लेकिन उन्होंने जनता को गुमराह किया। उत्साही बंधुओं, श्री जग मोहन सक्सेना और डॉ. हरि मोहन सक्सेना, जिन्होंने लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान की खोज की, के प्रयासों ने सच्चाई को उजागर कर दिया। प्रियंका सक्सेना का लैंडर छवि प्रसंस्करण का योगदान भी इस खोज में कम महत्वपूर्ण नहीं था।Enlarged and enhanced images of the lander and the rover