Dr. Hari Mohan Saxena

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क्या चंद्रयान लैंडर विक्रम के ध्वस्त होने का दावा झूठा है? सच क्या है?

user image 2021-10-04
By: Dr. Hari Mohan Saxena
Posted in: Space Exploration
क्या चंद्रयान लैंडर विक्रम के ध्वस्त होने का दावा झूठा है? सच क्या है?

भारतीय चंद्रयान 2 मिशन के तहत भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो द्वारा प्रक्षेपित लैंडर विक्रम के चंद्रमा पर पहुँचते ही 7 सितम्बर 2019 को दुर्घटनाग्रस्त हो जाने की घटना से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण तथ्य जन सामान्य से छुपाए गए हैं तथा लैंडरके चकनाचूर हो जाने की झूठी खबर विश्व भर के प्रमुख समाचार पत्रों में छापी गई तथा टीवी पर प्रसारित की गई है. लैंडर विक्रम के चकनाचूर हो जाने की खोज का श्रेय भी नासा जैसी शीर्ष एजेंसी द्वारा एक युवा इंजीनियर षणमुख सुब्रमण्यम के दावे पर बिना परखे ही आनन-फानन में दे दिया गया था. इस पर विडंबना यह है कि इसरो ने आज तक ना तो सत्य उजागर किया और ना ही झूठ का खंडन किया. इसरो के मौन से विश्व में  यह झूठ सहर्ष ही सच मान लिया गया, परंतु वास्तविकता कुछ और ही है. नासा और इसरो के संबद्ध अधिकारियों और संगठनों को बार-बार सच बताने पर भी वह मौन साधे बैठे हैं. वह ना तो सत्य का उजागर करते हैं और ना ही झूठे दावों का खंडन करते हैं. यह बात स्थिति को और रहस्यमय बना रही है तथा किसी बड़े और व्यापक षड्यंत्र की ओर इशारा करती है. राष्ट्रहित में यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि लैंडर विक्रम संबंधी पूरी जाँच सर्वोच्च स्तर पर की जाए और सत्य को देश और विश्व के सामने लाया जाए.

सत्य यह है कि ऑर्बिटर चंद्रयान से छूटने के बाद लैंडर विक्रम चकनाचूर नहीं हुआ था, अपितु सकुशल चंद्रतल पर उतर गया था. हालांकि उसका इसरो मिशन कंट्रोल से संचार संपर्क लैंड करने के कुछ ही क्षण पहले 2.1 किलोमीटर की दूरी पर ही खत्म हो गया था. ना केवल विक्रम सुरक्षित चंद्रतल पर उतरने में सफल हुआ, उसके द्वार खुलने पर रैंप भी ठीक तरह से लग गया था और रोवर प्रज्ञान सफलतापूर्वक चंद्रतल पर उतार दिया गया था. इस प्रकार भारत विश्व में पहला ऐसा देश बन गया जिसने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में सफलता पूर्वक अपना स्वदेशी लैंडर और रोवर उतार दिया था.

लैंडर विक्रम को चंद्रतल पर सुरक्षित खोज निकालने का श्रेय मिलना चाहिए बीकानेर के ग़ैर पेशेवर खगोलविद जगमोहन सक्सेना को जिन्होंने उस दुर्घटना के 1 साल बाद अथक प्रयास करके नासा द्वारा द्वारा जारी की गई चंद्रतल की तस्वीरों में से अगस्त 2020 में विक्रम को ढूंढ निकाला. विक्रम की सही पहचान करने में उनकी मदद की उनके बड़े भाई डॉ. हरि मोहन सक्सेना ने जो लुधियाना में इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर होने के अलावा स्वयं भी अंतरिक्ष अनुसंधान में रुचि रखते हैं. डॉ. सक्सेना ने जगमोहन द्वारा चिन्हित संभावित लैंडर की छवि को परिष्कृत और बड़ा करने के बाद उसके प्रमुख हिस्सों को पहचान लिया. उन्होंने इस खोज को पुष्ट करने के अलावा स्वयं ही रोवर प्रज्ञान को भी ढूंढ निकाला जो लैंडर विक्रम से कुछ दूरी पर सही सलामत मौजूद था.

चूँकि लैंडरके चंद्रतल पर उतरने के बाद के क्रियाकलाप स्वचालित एवं पूर्व निर्धारित थे, उन पर संचार संपर्क टूटने का कोई असर नहीं हुआ और लैंडरने अपना कार्य जारी रखा. प्रज्ञान सौर ऊर्जा से संचालित था अतः वह ऊर्जा पाकर धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा और 1 साल के दौरान लगभग 1 किलोमीटर की दूरी तय कर चुका था. डॉ. सक्सेना ने इस महत्वपूर्ण खोज को ईमेल व ट्विटर द्वारा नासा व इसरो तक पहुंचाने की बहुत कोशिश की परंतु दोनों ही संगठनों ने चुप्पी साध ली. अंत में डॉ. सक्सेना ने एक शोध पत्र में सारी जानकारी व विक्रम और प्रज्ञान की चंद्रतल पर मौजूदगी की छवियां तथा उनकी सही लोकेशन एक वैज्ञानिक जर्नल – “इंटरनेशनल जर्नल आफ रिसर्च – ग्रंथालय:” में प्रकाशित कर दी (https://t.co/gIPykDO3jz). वह शोध पत्र भी उन्होंने नासा, इसरो तथा अन्य संबंधित संगठनों के शीर्ष पदाधिकारियों को प्रेषित कर दिया. परंतु आज तक उन्होंने ना तो इसका खंडन किया है और ना ही पुष्टि. प्रेस व मीडिया ने भी इस सत्य को दबा दिया. इस चुप्पी ने कई महत्वपूर्ण प्रश्नों को सामने लाकर रख दिया है जिनके जवाब राष्ट्रहित में बहुत जरूरी है क्योंकि इस मिशन में जनता द्वारा दिए गए कर से जमा सरकारी पैसों का निवेश हुआ था. यह जनता का अधिकार है कि उसे सच का पता चले. कुछ अनुत्तरित प्रश्न नीचे दिए गए हैं:

  1. जांच के लिए गठित उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक क्यों नहीं की गई? उन्होंने क्या तथ्य जुटाए?
  2. इसरो अध्यक्ष के. सिवन ने दुर्घटना के 1 दिन बाद प्रेस में वक्तव्य दिया था कि लैंडर विक्रम की थर्मल छवि रात में ले ली गई है, वह चंद्रतल पर समूचा पाया गया है, विखंडित नहीं हुआ लेकिन तिरछा लैंड किया है. 2 साल बाद भी उस थर्मल इमेज या उसके बाद दिन के उजाले में ली गई विक्रम की कोई तस्वीर सार्वजनिक तौर पर इसरो की वेबसाइट पर या मीडिया में जारी क्यों नहीं की गई? इसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का बहाना मान्य नहीं होगा क्योंकि दुर्घटना तो हो ही चुकी है. वैसे भी नासा तो पूरे चंद्रमा के सतह की सारी तस्वीरें अपनी वेबसाइट पर नियमित रूप से प्रदर्शित करता रहता है.
  3. षणमुख सुब्रमण्यन द्वारा चंद्रतल पर छोटे बिंदु को दिखाकर उसे लैंडरके टुकड़ों के रूप में पेश किया गया था. उसकी पुष्टि नासा ने भी दिसंबर 2019 में तुरंत ही कर दी और बड़े पैमाने पर उसे विश्व के समाचार पत्रों व टीवी पर प्रस्तुत किया गया था. परंतु उस छवि को लैंडर के टुकड़े बताने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. ठोस धातु के बने 2.54 x 2 x 1.2 मीटर के लैंडर के छोटे बिंदुओं के बराबर टुकड़े होने का कोई तर्कसंगत कारण नहीं है क्योंकि वह चंद्रमा की मिट्टी में गिरा था, चट्टानों पर नहीं और चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी का 1/6 ही है. दिलचस्प बात यह है कि विक्रम के टुकड़े ढूंढने का श्रेय लेने के बाद सुब्रमण्यन ने बाद में अगस्त 2020 में स्वयं स्वीकारा था कि लैंडरटूटा नहीं बल्कि साबुत चंद्रतल पर उतरा था.
  4. क्या 2 सालों में ऑर्बिटर लैंडर विक्रम को ढूंढने और उसकी तस्वीर लेने में नाकामयाब रहा? क्या हमारे वैज्ञानिक नासा के ऑर्बिटर द्वारा ली गई चंद्रतल की तस्वीरों में विक्रम को अभी तक नहीं ढूंढ पाए?

5. यदि लैंडर चकनाचूर हो गया था तो नियोजित लैंडिंग साइट के पास जो समूचा लैंडर हमने ढूंढा है वह क्या है? उसकी सही लोकेशन तथा कोऑर्डिनेट भी हमने प्रकाशित किए हैं. नासा और इसरो उसी स्थान पर जांच क्यों नहीं करते जबकि हमारे जैसे गैर पेशेवर लोग भी चंद्रतल की तस्वीरों में से इन कोऑर्डिनेट के आधार पर लैंडरको आसानी से ढूंढ सकते हैं.

  1. इस पूरे प्रकरण में विसंगतियां क्यों हैं? जांच में पारदर्शिता क्यों नहीं है? सत्य सामने क्यों नहीं आने दिया जा रहा है? क्या कुछ शीर्ष अधिकारियों को बचाने के लिए ऐसा किया जा रहा है? जो भी कारण रहा हो, इसरो के इस रवैये से उसकी अपनी छवि को नुकसान अवश्य पहुंचा है. झूठ को बढ़ावा देना और सत्य को दबाना, दोनों ही एक प्रतिष्ठित सार्वजनिक संस्थान से अपेक्षित नहीं हैं.
  2. यदि संचार संपर्क टूटने का कारण इसरो को पता चल गया है तो यह राष्ट्र के सामने आना चाहिए. यदि किसी अन्य देश का इस साजिश में हाथ है तो वह भी विश्व को पता चलना आवश्यक है. दोषियों पर कोई कार्यवाही हो या ना हो, परंतु भारत को सफलतापूर्वक लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को चंद्रमा पर उतारने का श्रेय अवश्य मिलना चाहिए. और इस महत्वपूर्ण खोज के लिए खोजी सक्सेना बंधुओं को भी उन का श्रेय अवश्य मिलना चाहिए.English blog on lander story

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